हुमायूं का मकबरा, बिल्कुल अलग अदांज में।

वो खाता रहा ठोकरें, जिंदगी भर सुकूं को।
ना मिल सका सुकूं, मौत के बाद भी रूह को।।

द्वितीय मुगल बादशाह “नासिरूद्दीन मुहम्मद हुमायूं” पर ये पंक्तियां सटीक बैठती हैं। इतिहास में बहुत से शासकों का जीवन लङाईयों में बीता है पर इस शासक का जीवन लङाईयों के साथ-साथ बेहद लंबे सफरों में भी बीता। काबुल में जन्म के बाद हुमायूं हजारों किलोमीटरों दूर दिल्ली आया। 23 साल की उम्र में पिता बाबर का साया सिर से उठ जाने के बाद 1531 में हुमायूं को गद्दी संभालनी पङी। नौ वर्षों तक शासन किया लेकिन 1540 में जब शेरशाह सूरी के हाथों मात खानी पङी तो फिर से सफर का जो सिलसिला शुरू हुआ तो लगातार पंद्रह सालों तक चलता रहा। वो दिल्ली से अफगानिस्तान होता हुआ फारस गया। वर्षों तक सेना और सहयोगी इकठ्ठे करता रहा ताकि फिर से अपना राज पा सके। जब लौटा तो उसके साथ थी कुलीन फारसी सेवकवृंदों और लङाकों की पूरी फौज। फारस में बिताऐ गऐ वे पंद्रह वर्ष न केवल हुमायूं के जिंदगी में बल्कि उसकी मौत के बाद बनने वाले मकबरे के लिऐ भी अति महत्वपूर्ण सिद्ध हुऐ। फारसी संस्कृति का असर हुमायूं और उसके बाद के काल के हिंदुस्तान पर साफ-साफ दिखता भी है। दर-दर की ठोकरें खाऐ इस शंहशाह ने दिल्ली लौट कर राज की बाजी तो जीत ली पर केवल साल-भर ही हुकूमत कर पाया। 1556 में सीढीयों से गिरकर हुमायूं की मौत हो गई। उसे दिल्ली में पुराना किला में दफनाया गया। सफर के जिन्न ने मरहूम बादशाह का पीछा मरने के बाद भी नहीं छोङा। हेमू ने जब दिल्ली पर हमला किया तो मुगलों के पैर उखङ गऐ और भागती हुई मुगल सेना को हुमायूं का शव वापस खोद निकालना पङा। उन्हें डर था कि कहीं हेमू उसे नेस्तनाबूद ना कर दे। शव को सरहिंद ले जाकर दफन किया गया। सफर यहीं नहीं रूका। हुमायूं के हरम की एक बेगम थी- हमीदा। हमीदा बेगम का हुमायूं की जिंदगी में वही स्थान था जो उसके परपोते शाहजहां की जिंदगी में मुमताज बेगम का रहा। हमीदा बेगम फारस के वनवास के पहले, दौरान और बाद में उसी तरह हुमायूं के साथ रही थी जैसे मुमताज जंगों और सफरों के दौरान शाहजहां के साथ। फर्क बस इतना है कि शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की कब्र के लिऐ ताजमहल का निर्माण* कराया तो हमीदा ने अपने शौहर हुमायूं के लिऐ उसी ताज के प्रेरक मकबरे का। हां बाद में इन दोनों को ही उनके शरीक-ए-हय़ात के साथ ही दफन किया गया। हमीदा की मुहब्बत का ही असर रहा कि हुमायूं को पंजाब की एक गुमनाम-सी जगह के हवाले नहीं छोङ दिया गया बल्कि दिल्ली में उसके लिऐ एक आलीशान मकबरे का निर्माण कराया गया। हेरात से विशेष कारीगर बुलाये गये इसे गढने के वास्ते। 1556 में मौत के बाद इस आखिरी और भव्य ठिकाने पर आते-आते हुमायूं को करीब दस साल लग गऐ। उसे तीन बार अलग-अलग जगहों पर दफनाया गया।

कहीं और कभी देखी है लाश की ऐसी खानाबदोशी। इसी बात पर उपर दो पंक्तियां लिखनी पङीं।

हुमायूं का मकबरा

चलिये अब आप को लिये चलते हैं उसी सबसे विनम्र मुगल सम्राट नासिरूद्दीन मुहम्मद हुमायूं के मकबरे की ओर जो फिलवक्त भारत की राजधानी दिल्ली में निजामुद्दीन (पूर्व) में मथुरा रोड के किनारे अवस्थित है। इसे यूनेस्को द्वारा विश्व-विरासत स्थल का दर्ज़ा भी प्राप्त है। हुमायूं के जीवन की तरह उसके मकबरे को भी शानो-शौकत और उपेक्षा के अनेक दौर देखने पङे। कभी यहां के बाग-बगीचों में पक्षियों का कलरव गूंजा तो कभी इन्हीं बागों को उजाङ कर साग उगाये गये। कभी ये अंग्रेजों का पिकनिक स्पॉट बना तो कभी अवैध कब्जाधारियों का अड्डा। 1947 में आजादी के दौरान जब मारकाट मची तो यह रिफ्यूजी कैंप तक बन गया। शरणार्थियों ने यहां खूब नुकसान भी किये। बाद में आगा खां ट्रस्ट के साथ मिलकर जीर्णोद्धार का कार्य भारतीय पुरात्तत्व सर्वेक्षण विभाग ने किया। आज तो इसकी एक झलक देख लीजिऐ, शान देखते ही बनती है।
Humayun’s Tomb
हुमायूं के मकबरे की संपूर्ण झलक

मकबरे में प्रवेश

हुमायूं के मकबरे में प्रवेश होता है इसकी पश्चिम दिशा से। मैं यहां अपनी मोटरसाईकिल से आया था जिसका कोई पार्किंग शुल्क नहीं लगा। दस रूपये की एण्ट्री फीस फी पर्ची कटा कर परिसर में घुस गया। घुसते ही मैंने स्वयं को एक चौङे पक्के मार्ग पर पाया। यह लाल बलुआ पत्थर से बना हुआ मुख्य मार्ग है और सीधा हुमायूं के मुख्य मकबरे तक पहुँचता है। सबसे पहले इसके दाऐं हाथ को स्थित है नियाजी इसा खाँ का मकबरा। यह दुमंजिली इमारत है और ऊपर गुंबद भी है। यह पूरे हुमायूं के मकबरे परिसर का एक भाग है लेकिन अपने-आप में उससे अलग एक स्वतंत्र परिसर का आभास कराता है। इसा खाँ का मकबरा चारों ओर से दीवारों से घिरा है। इन दीवारों में छोटी-छोटी कोठरियां भी बनी हुई हैं। दीवारों के ठीक बीच में है मकबरा-ए-इसा खाँ जिसमें छह कब्रें बनी हुई हैं। ये कब्रें नियाजी इसा खाँ और उसके परिजनों की हैं। इस मकबरे की पश्चिम दिशा में एक मस्जिद भी है। यह परिसर हुमायूं के मकबरे से बीस वर्ष पहले इसा खाँ के जीवन-काल में ही बन गया था। इसा खाँ शेरशाह सूरी का एक दरबारी अमीर था।
isa khan tomb, delhi
नियाजी इसा खाँ का मकबरा
niyazi isa khan tomb
नियाजी इसा खाँ के मकबरे की छत पर उकेरी गई बेहतरीन कलाकारी
isa khan tomb, delhi
नियाजी इसा खाँ का मकबरा। कारीगर पत्थर तराशना भूल गये (तीर का निशान)।
 इसके बाद मुख्य मार्ग के बाईं ओर आता है बू-हलीमा का मकबरा। यह एक औरत की समाधि है जिसके बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालांकि माना जाता है कि वह हुमायूं के फारस-प्रवास के दौरान उसके साथ रही थी। इसके बाद मुख्य मार्ग पर एक इमारतनुमा दरवाजा आता है। इसे बू-हलीमा गेट कहा जाता है। सफेद रंग के इस दरवाजे के उपरी भाग में लाल और नीले रंग की डिजाईन पट्टी लगी है।
bu-halima tomb,  delhi
बू-हलीमा का मकबरा

bu-halima gate, delhi
बू-हलीमा गेट
बू-हलीमा गेट से निकलते ही दाईं ओर है अरब-सराय का दरवाजा। यह सराय मकबरे के मिस्त्री-कारीगरों के निवास के लिये बनवाई गई थी। अरब-सराय का दरवाजा वाकई आकर्षक है। लाल बलुआ पत्थरों से इसकी सजावट बङी खूबसूरत लगती है। लाल पत्थरों पर सफेद संगमरमर से कारीगरी करके चकरियां भी बनाई गई हैं। दरवाजे के उपरी हिस्से में बाहर को निकली हुऐ दो झरोखे बने हैं। एक झरोखा ठीक बीच में भी है। इसकी भीतरी छत अब गिर गई है।
Arab Sarai Gate, Delhi
अरब-सराय दरवाजा
इसके बाद बिल्कुल सामने है हुमायूं के मकबरे का दरवाजा। बू-हलीमा गेट से हुमायूं के मकबरे की ओर जाते हुऐ एक खास जगह पर ऐसा नजर आता है जैसे मकबरे का गुंबद इस दरवाजे पर ही रखा हुआ हो। दूर से ही इसकी भव्यता नजर आने लगती है। एक आलीशान स्मारक का आलीशान प्रवेश-द्वार। यह काफी बङा है जिसमें दोनों ओर कक्ष बने हुये हैं। इन कक्षों में मुगलों की समृद्ध विरासत की झांकियां दिखाई गई हैं, खासतौर पर हुमायूं के मकबरे से संबंधित। इसा खाँ के मकबरे की खुदाई से मिले बहुत से अवशेष भी यहीं हैं। संपूर्ण संरक्षित क्षेत्र का एक मॉडल भी रखा हुआ है।
Humayun’s Tomb Gate
हुमायूं के मकबरे का दरवाजा और दरवाजे पर रखा प्रतीत होता मकबरे का गुंबद।
Gate of Humayun’s Tomb
हुमायूं के मकबरे का पश्चिमी दरवाजा
Majestic Humayun’s Tomb
आलीशान हुमायूं का मकबरा

हुमायूं के मकबरे का वास्तु-नियोजन

चार-बाग़

अब आपको बताते हैं हुमायूं के मकबरे के वास्तु-नियोजन के बारे में। हिंदुस्तान में यह पहली इमारत थी जब मकबरे के लिये चार-बाग़ शैली प्रयोग में लाई गई। परिसर के ठीक बीच में मकबरे की इमारत है। इसके चारों ओर चार हरियाले बाग हैं। इन चार बागों को भी अंदर ही अंदर आठ अलग-अलग भागों में विभाजित किया गया है यानि कुल मिलाकर 32 बाग हैं। ये सभी पक्के पथों द्वारा स्पष्टतः विभाजित हैं। इन पक्के पथों के ठीक बीच से पानी की नालियों को गुजारा गया है। ये नालियां अपने-आप में इंजिनियरिंग का नायाब नमूना हैं। बगैर किसी वाटर-लिफ्टिंग सिस्टम के इनमें पानी बहता रहता है यानि 30 एकङ में फैले बागों की नालियों में पानी के प्रवाह के लिये किसी मोटर की जरूरत नहीं पङती। वास्तुकला का एक और कमाल देखिये। ये कुल मिलाकर 32 बाग हैं पर आश्चर्यजनक रूप से छह-छह बागों के समूह बन गये हैं। जहां भी छह बागों के समूह के बीच में से गुजरने वाले पथ के बीच में बहने वाला पानी दूसरे समूह के पानी से मिलता है वहीं पर फव्वारा लगा दिया गया है। इन फव्वारों से फूटते जल के बीच से मुख्य मकबरे का जो कमाल का दृश्य मुझे दिखाई दिया था उसे लिखने के लिये मेरे पास शब्द नहीं हैं। ये कुल चार फव्वारे हैं जो ठीक उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दिशाओं में हैं। इसके अलावा मकबरे के चारों कोनों पर चार जल-कुंड भी हैं। ये सारा जलतंत्र ऑटो-लिफ्टेड है। ऐसी ही जटिल वास्तुकला आपको मकबरे की मुख्य इमारत के भीतर भी दिखाई देगी। मकबरे का पूरा ढाँचा चौकोर है। सजावट की हद देखिये कि चारों कोनों पर खजूरनुमा पाँच-पाँच ऊंचे-ऊंचे वृक्ष लगाये गये हैं जो मीनारों की कमी को पूरा करते से प्रतीत होते हैं।
Humayun’s Tomb Model
हुमायूं के मकबरे का मॉडल, बाग-बगीचे और अन्य सभी घटक।
Fountain at Humayun’s Tomb
चार-बाग के एक फव्वारे से दिखता हुमायूं का मकबरा
Fountain View of Char Bagh at Humayun’s Tomb
जूम करने पर

मकबरा परिसर की अन्य संरचनाऐं

अब आपको बताता हूँ मकबरा परिसर की अन्य संरचनाओं के बारे में। मकबरे के ठीक उत्तर में है नार्थ-पैवेलियन। यह एक सफेद इमारत है। ठीक उत्तर-पूर्व में है इस्लामी संत निजामुद्दीन का ठिकाना “चिल्ला” जहां वो अपने जीवनकाल में रहते थे। आज भी इसके भग्नावशेष मौजूद हैं। ठीक पूर्व में है बारादरी भवन जिसे शाही परिवार के सदस्यों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था। इसके बाद ठीक दक्षिण-पूर्व में है नाई का मकबरा। इस मकबरे में एक मर्द और एक जनाना कब्र है। यह भी कम आकर्षक नहीं है। इसकी छत के चारों कोनों पर लगी चार छतरियों की छत पर लगी टाईलें आज भी सलामत हैं। इसके बाद ठीक दक्षिण में है दक्षिणी दरवाजा- मकबरे में जाने का शाही प्रवेश-द्वार। ठीक दक्षिण-पश्चिम में है अरब-सराय जो कामगारों के लिये बनी थी। ठीक पश्चिम में है आम आवाजाही का प्रवेश-द्वार। और अंत में उत्तर-पश्चिम में है कुछ अनाम कब्रें। यानि कोई भी दिशा, कोई भी कोना खाली नहीं है। विभिन्न निर्माणों की ये सभी दिशायें हुमायूं की कब्र के पास बैठकर मैंने स्वयं अपने कंपास-यंत्र से नोट की हैं।
nizamuddin inn
संत निजामुद्दीन का ठिकाना “चिल्ला”
Barber's Tomb
नाई का मकबरा
Graves in Barber's Tomb, Delhi
नाई के मकबरे में दो कब्रें
Stone work in Barber's Tomb, Delhi
नाई के मकबरे के ऊपरी हिस्से में एक अलंकरण
Royal South Gate of Humayun's Tomb
दक्षिणी दरवाजा- मकबरे में जाने का शाही प्रवेश-द्वार।
Stonework at South Gate of Humayun's Tomb
दक्षिणी दरवाजा
Stonework at South Gate of Humayun's Tomb
दक्षिणी दरवाजा- शाही प्रवेश-द्वार।
Graves in Humayun's Tomb
मकबरे के उत्तर-पश्चिम में कुछ अनाम कब्रें।

मुख्य इमारत

अब चलते हैं हुमायूं के मकबरे की मुख्य इमारत में। मकबरा कुछ मीटर उंचे एक चबूतरे पर बना हुआ है। यह चबूतरा ठोस नहीं है बल्कि अंदर इसमें अनेक कक्ष बने हुये हैं जिनमें अनेकों कब्रें बनी हुई हैं। इस चबूतरे के ऊपर जाने के लिऐ सीढीयां बनी हुई हैं। जैसे ही उपर पहुँचते हैं सामने होता है एक अय्वान। अय्वान असल में किसी विशाल इमारत का एक बुलंद दरवाजा जैसा होता है जिसकी छत मेहराबदार होती है। चबूतरे के ऊपर मकबरे की इमारत में मुख्यतः चार अय्वान हैं। चारों अलग-अलग दिशाओं में है पर प्रवेश केवल एक से ही दिया गया है। बाहर से यह इमारत जितनी सरल दिखाई देती है अंदर से उतनी ही जटिल है। इसमें कुल नौ कक्ष हैं। बिल्कुल मध्य में एक मुख्य कक्ष है। इस कक्ष में केवल एक ही कब्र है जहां शंहशाह हुमायूं दफ़न है। वास्तव में यह कब्र तो प्रतिकृति बताई जाती है। असली कब्र इसके नीचे बताई जाती है। इस मुख्य कक्ष के चारों कोनों पर चार कक्ष हैं जो दुमंजिले हैं और मुख्य केन्द्रीय कक्ष की जालीदार गैलरियों द्वारा अलग अलग किये गये हैं। इन कक्षों में अनेक शाही मुगलों की कब्रें हैं। हुमायूं की बेगम हमीदा की कब्र भी यहीं है। इन सभी चारों कक्षों में पांच जालीदार गैलरियां हैं। दक्षिण-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम के कक्षों में दो दरवाजे हैं जबकि उत्तर-पूर्व और उत्तर-पश्चिम के कक्षों में एक-एक दरवाजा है। ये दरवाजे गैलरियों द्वारा मुख्य केन्द्रीय कक्ष में खुलते हैं। अपने दिशा-सूचक यंत्र द्वारा मैंने यह नियोजन भी हुमायूं की कब्र के पास बैठकर नोट किया है। पाठकों की सुविधा के लिये इसका एक सरल मॉडल नीचे दे रहा हूँ जिसे मैंने अपने कंप्यूटर पर तैयार किया है। यह मॉडल मैंने अपने कंपास और जी.पी.एस. यंत्र से प्राप्त आंकङों के आधार पर बनाया है। हुमायूं के मकबरे की मुख्य इमारत के अंदर व बाहर ज्यादातर लाल बलुआ पत्थर, सफेद संगमरमर और काले संगमरमर का काम किया गया है। हालांकि कई जगहों पर रंगीन पत्थरों से पच्चीकारी भी की गई है। ऊपरी गुंबद पूरी तरह से सफेद संगमरमर के पत्थरों से ढका हुआ है। इस गुंबद की चोटी पर पीतल की स्तूपिका भी लगाई गई है जिसके सबसे ऊपरी सिरे पर चाँद की प्रतिकृति है। आम उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार यहां डेढ सौ से भी ज्यादा कब्रें हैं। वो सभी शाही मुगल परिवार से संबंधित बताई जाती हैं।
architecture of Humayun's Tomb
हुमायूं के मकबरे का वास्तु-नियोजन।
view of Humayun's Tomb, Delhi
हुमायूं का मकबरा
Entrance gate of humayun's tomb, delhi
हुमायूं के मकबरे का एक अय्वान।
view of Humayun's Tomb, Delhi
हुमायूं के मकबरे की सबसे मुख्य इमारत।
Grave of Humayun in his Tomb
हुमायूं की आरामगाह।
inner view of Humayun's Tomb, delhi
मकबरे में एक सिरे से दुसरे का नजारा। पहले दो कब्रें, फिर हुमायूं की कब्र और अंत में दूर फिर कब्र।
floor of Humayun's Tomb, delhi
मकबरे के फर्श का डिजाईन।
floor view of Humayun's Tomb, delhi
मकबरे के फर्श का डिजाईन।
stylish floor
मकबरे के फर्श का डिजाईन।

ये जीव भी वहीं पर मौजूद थे।
 तो आप कब जा रहे हैं मुगलों के इस कब्रिस्तान को देखने?

2 टिप्पणियाँ

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  2. यह तो पूरा मंदिर है, यदि आप इसके वास्तु को ध्यान से देखेंगे तो शक्ति यंत्र का कई बार प्रयोग आप देख सकते है, साथ ही अष्टकोणीय यंत्र जो फ्लोर पर और पानी इकठ्ठा करने वाली जगह पर भी बना हुआ है, इससे साफ़ है की ये एक हिन्दू मंदिर था, जब अकबर ने दिल्ली पर कब्ज़ा किया तो इस मंदिर को मकबरा बनाने के लिए अपने बाप हुमायूँ को सरहिंद से यहाँ दफना दिया

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